Thursday, November 21, 2024
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“पच्चीस” का फलसफा, हर अच्छी कहानी अच्छी फिल्म बन जाए, जरूरी तो नहीं

कहते है कि हार के बाद ही जीत होती है। साथ ही ये भी कहा जाता है कि अगर आप खुद से हार गए तो दुनिया आपको जितने नहीं देगी। और जिंदगी में कभी कभी अंजाम की परवाह किये बगैर ही चांस लेना पड़ता है। और आज के समय में लोग शॉर्टकट तरीके से ही सफलता पाना चाहते है लेकिन वो लोग ज्यादा दिन अपनी इस सफलता से खुश नहीं रहते है।

कहते है कि हार के बाद ही जीत होती है। साथ ही ये भी कहा जाता है कि अगर आप खुद से हार गए तो दुनिया आपको जितने नहीं देगी। और जिंदगी में कभी कभी अंजाम की परवाह किये बगैर ही चांस लेना पड़ता है। और आज के समय में लोग शॉर्टकट तरीके से ही सफलता पाना चाहते है लेकिन वो लोग ज्यादा दिन अपनी इस सफलता से खुश नहीं रहते है। हमेशा जीतने की लत, आपको आखिर में हरा ही देती है और एक बार हारना शुरू करते हैं तो आपका पतन निश्चित है। अमेजन प्राइम पर तेलुगू फिल्म “पच्चीस” का फलसफा भी ऐसा ही है।

फिल्‍म का नाम- पच्चीस (अमेजन प्राइम वीडियो )
रिलीज डेट- 12 जून, 2021
डायरेक्‍टर- श्रीकृष्णा और राम साईं
कास्‍ट- राम्ज़, स्वेता वर्मा, जय चंद्र, रवि वर्मा और अन्य
म्‍यूज‍िक- स्मरण साईं
जॉनर- क्राइम, थ्रिलर, एक्शन

रेटिंग- 2.5 /5
ड्यूरेशन- 2 घंटा 7 मिनिट
प्रोड्यूसर- आवास चित्रम, रास्ता फिल्म्स

हालांकि फिल्म देखते समय ऐसा महसूस होता है कि ढेरों किरदार आ जा रहे हैं और कई किरदार तो सिर्फ एक या दो सीन में ही नज़र आते हैं। फिल्म में ये बात खटकती है। लेखन से निर्देशन की तरफ जाने में ये समस्या आती ही है क्योंकि लेखक को अपने सीन काटने में बड़ा दुःख होता है। इन सबके बावजूद, कहानी की अपनी गति लोगों को बांधे रखती है। फिल्म में बोरियत नहीं है बस लम्बाई थोड़ी ज़्यादा लगती है। फिल्म में गानों की न गुंजाईश थी न ही रखे गए हैं। एक ही गाना है जूधम जो कि जुए की आदत पर लिखा गया है, अच्छी बीट्स हैं और इसलिए अच्छा लगता है। इस तरह की फिल्म में गाने वैसे भी एक रुकावट ही होते हैं। संगीत स्मरण साईं का है।

कार्तिक परमार इस फिल्म के सिनेमेटोग्राफर हैं और उन्होंने अपनी पहली ही फिल्म में फ्रेमिंग और लाइटिंग में काफी अच्छा काम किया है। फिल्म के एडिटर राणा प्रताप की भी ये पहली फिल्म है और उन्होनें निर्देशक के कहे अनुसार काम किया गया है। इसी वजह से फिल्म लम्बी हो गयी और कुछ किरदार एक्स्ट्रा थे जो फिल्म में आ गए। कुल जमा लालच की ये कहानी, जुए के गलियारों से गुज़र कर राजनीती की मंज़िल पर जाने की कोशिश करती रहती है। एक बार ये फिल्म देखी जा सकती है। अनुराग कश्यप की फिल्मों के शौक़ीन शायद इस फिल्म को पसंद करेंगे।

बासव राजू और गंगाधरन नाम के दो राजनैतिक दुश्मन अपने-अपने काले धंधे चलाने के लिए गैंग रखते हैं। बासव राजू अपने एक आदमी को गंगाधरन की गैंग में मुखबिर बनाकर घुसा देता है और जब गंगाधरन को पता चलता है तो वो उस मुखबिर को अपने आदमी जयंत के हाथों मरवा देता है। दूसरी और अभिराम एक जुगाड़ किस्म का युवक है जो जुआघर के मालिक आरके से करीब 17 लाख रुपये उधार ले चुका है। पैसे लौटाने की बारी आते ही वो जयंत तक पहुंच कर ये बताना चाहता है कि पुलिस का मुखबिर उनके गैंग में अभी भी है और वो मुखबिर कौन है ये बताने के अभिराम को पैसे चाहिए होंगे। वहीं जयंत ने जिस आदमी का क़त्ल किया था उसकी बहन अवन्ति अपने भाई को ढूंढने के चक्कर में अभिराम से मिलती है और फिर यहां से शुरू होता है चूहा बिल्ली का खेल, जो इस फिल्म की मुख्य कथा है।

मुख्य किरदार में हैं राम्ज़ और स्वेता वर्मा। दोनों ने अपनी भूमिकाएं बखूबी निभाई हैं। स्वेता वर्मा ने थोड़ी बेहतर एक्टिंग की है क्योंकिं उनके पास अनुभव है और उनका किरदार भी एक ऐसी बहन का है जिसके पास कुछ खोने के लिए है नहीं, उसका भाई लापता है और उसे ये पता चलता है कि उसका भाई आपराधिक तत्वों के साथ काम कर रहा था। राम्ज़ की ये पहली फिल्म है और उन्होंने एक ऐसे युवा की भूमिका निभाई है जो जुगाड़ में विश्वास रखता है, कम से कम काम करके ज़्यादा पैसा कमाना चाहता है। उसके पिता भी स्कीम बना कर लोगों से पैसे ऐंठते हैं और जेल में बंद दिखाए गए हैं। आरके की भूमिका में हैं रवि वर्मा जो कि तेलुगु फिल्मों में कई सालों से काम कर रहे हैं। इस फिल्म में उन्होंने बहुत अच्छा अभिनय किया है। बाकी कलाकार भी अपनी जगह ठीक हैं।
फिल्म की कहानी बहुत अच्छी है। निर्देशक श्रीकृष्णा ने ही फिल्म की कहानी लिखी है और इसलिए कई सारे किरदार होने के बावजूद, कहानी उद्देश्य से भटकती नहीं है।

 

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