Saturday, July 27, 2024
HomeReviewsReview: अर्जुन कपूर की फिल्म सरदार का ग्रैंडसन इमोशंस से भरी है,...

Review: अर्जुन कपूर की फिल्म सरदार का ग्रैंडसन इमोशंस से भरी है, फिर भी करती है निराश

सरदार का ग्रैंडसन की अनोखी है फिल्म की कहानी। बता दें कि इंमोशन्स से भरी है ये फिल्म। दरअसल फिल्म की कहानी है सरदार कौर (नीना गुप्ता) और उनके पोते अमरीक सिंह (अर्जुन कपूर) की, जो एक दूसरे से बेहद प्यार करते हैं। अमरीक एक ऐसा इंसान हैं जो हमेशा कोई ना कोई गड़बड़ करता ही रहता है।

नई दिल्ली। सरदार का ग्रैंडसन की अनोखी है फिल्म की कहानी। बता दें कि इंमोशन्स से भरी है ये फिल्म। दरअसल फिल्म की कहानी है सरदार कौर (नीना गुप्ता) और उनके पोते अमरीक सिंह (अर्जुन कपूर) की, जो एक दूसरे से बेहद प्यार करते हैं। अमरीक एक ऐसा इंसान हैं जो हमेशा कोई ना कोई गड़बड़ करता ही रहता है। वह बचकानी हरकरतों और गलतियों को ना मानने के चलते फिल्म की शुरुआत में ही अपनी मंगेतर ए राधा (रकुल प्रीत सिंह) को खो देता है। मंगेतर के छोड़कर जाने के बाद वह अपना टूटा दिल लिए अमेरिका से भारत वापस आ जाता है।

फिल्म में ढेरों इमोशंस हैं, जो आपके ऊपर अपना असर करते हैं। आप यंग सरदार कौर और गुरशेर सिंह के रोमांस में खुद को खोते भी हो और बूढ़ी सरदार की आखिरी इच्छा के पीछे की कमी को देकर दुखी भी होते हो। सरदार का अपना घर देखना और पुरानी यादों को जीना आपकी भावनाओं को डगमगाता है। फिल्म का म्यूजिक अच्छा है। बैकग्राउंड स्कोर ने इमोशंस को अच्छा मैच किया है। हालांकि यह फिल्म और बेहतर हो सकती थी। और अगर हमें अमरीक के टेबल से गिरने वाले बात 50 बार ना बताई जाती तो भी चलता।

इस फिल्म की शुरुआत काफी अच्छी होती है। आपको पहली नजर में ही पता चल जाएगा कि अमरीक कितनी मुश्किलों को पैदा करने वाला इंसान है और क्यों उसकी मंगेतर उसे छोड़ गई। फिल्म शुरुआत में अमरीक की बेवकूफी और उसकी हरकतें आपको हंसाने के बजाए इर्रिटेट करती हैं। फिल्म के कुछ पलों में अर्जुन का काम काफी अच्छा लगता है, लेकिन बहुत-सी वह फीके नजर आते हैं। वहीं अमरीक की दादी सरदार कौर के रोल में नीना गुप्ता काफी बढ़िया थीं। उनके छोटे-छोटे जोक्स, उनकी हरकतें, उनका गुस्सा सभी काफी क्यूट था। अपने प्रोस्थेटिक्स के साथ वह सही में 90 साल की दादी नजर आईं। हालांकि उनका गुस्सा भी थोड़ा परेशान करने वाला जरूर था।

भारत के अमृतसर में अमरीक का परिवार रहता है। परिवार में हैं अमरीक की दादी सरदार कौर, जो ट्यूमर का शिकार हो गई हैं और उनके पास जीने के कुछ ही दिन बचे हैं। दादी अब अपनी जायदाद परिवार को देकर चैन से दुनिया छोड़ जाना चाहती हैं। लेकिन उनकी एक इच्छा है। सरदार कौर चाहती है कि भारत-पाकिस्तान के बंटवारे में लाहौर छूटा उनका घर वह एक बार फिर देख लें। सरदार का कहना है कि उनकी रूह का एक हिस्सा उसी घर पर छूट गया है और उन्हें पिछले 70 सालों से खालीपन महसूस होता है। ऐसे में वह अगर एक बार अपना घर देख लेंगी तो उनका खालीपन दूर हो जाएगा और वह चैन से मर पाएंगी।

सरदार की इच्छा सुनने के बाद अमरीक एक अच्छे पोते की तरह दादी के पाकिस्तान जाने का इंतजाम करने लगता है। हालांकि सरदार ने खुद ही कुछ मुसीबतों को कुछ समय पहले गले लगाया था, जिसकी वजह से उन्हें पाकिस्तान का वीजा नहीं मिल सकता। अमरीक तमाम कोशिशें करता है, जिसके बाद भी सरदार का पाकिस्तान जाना पक्का नहीं हो पाता। ऐसे में अमरीक को एक ऐसा आईडिया आता है, जो सुनकर आपको जरूर बचकाना लगेगा। अमरीक फैसला करता है कि अगर वह सरदार को उनके लाहौर वाले घर नहीं ले जा सकता, तो घर को सरदार के पास लेकर आ जाएग। अब अमरीक सिंह फ्रॉम अमरीका अपनी सरदार कौर फ्रॉम लाहौर के लिए ऐसा कैसे करेगा यही फिल्म में देखने वाली बात है।

अमरीक के पिता गुरकीरत सिंह उर्फ गुरकी के रोल में कंवलजीत एक काफी अच्छा का किया हैं। अमरीक की मां बनीं सोनी राजदान भी बढ़िया हैं। अमरीक की मंगेतर राधा के रोल में रकुल प्रीत सिंह का काम ठीक है। वह अमरीक को सच आ आईने तो दिखाती है लेकिन फिर खुद ही उसके सामने झुक जाती है, जो कि मैं मान रही हूं कि लोग प्यार और फिल्म के प्लॉट के लिए करते हैं। फिल्म में बाकी एक्टर्स का भी काम अच्छा है। जॉन अब्राहम और अदिति राव हैदरी ने फिल्म में कैमियो किया है और उनका काम बढ़िया था। खासकर अदिति को देखकर आप दिल खुश हो जाएगा।

अब आते हैं उन बातों के बारे में जो फिल्म को अच्छा होने से रोकती हैं। डायरेक्टर काशवी नायर की यह पहली फिल्म है, जिसका निर्देशन उन्होंने किया है। उनका काम ठीक था, लेकिन फिल्म में बहुत-सी कमियां थीं। इस फिल्म में कई पल थे जब आप बस इसे सहन कर रहे होते हैं। बहुत से फनी सीन्स या तो बहुत पुराने हैं या फिर बचकाने हैं। एक किरदार जो बिना गिराए अपने फोन इस्तेमाल नहीं कर सकता वो एक पुश्तैनी घर को एक देश से दूसरे देश लेकर आ जाता है। एक घर को एक देश से दूसरे देश, वो भी भारत और पाकिस्तान के रोड पर लेकर आकर इस फिल्म में बच्चे को टॉफी देने जैसा आसान दिखाया है, ऐसा कर पाना और एक घर को लेकर दूसरे देश तक जाना मुमकिन बात नहीं है। इसके अलावा फिल्म का मैसेज भी दोनों मुल्कों के बीच में अमन-चैन होने तक ही सीमित है।

 

 

RELATED ARTICLES

Most Popular