Saturday, July 27, 2024
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सपने हमेशा बड़े होने चाहिए, स्केटर गर्ल की दिल छू लेने वाली कहानी

मुंबई। हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज स्केटर गर्ल की कहानी ऐसे ही सपनों की मीठी सी कहानी है। स्केटिंग, या स्केटबोर्डिंग, बच्चों के बीच काफी पॉपुलर हो चला है। लेकिन ये सिर्फ शहरों में ही देखने को मिलता है। पर गावों में साधनहीन बच्चे भी इस खेल में रूचि रख सकते हैं। मंजरी माकीजानी की ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई `स्केटर गर्ल’ एक ऐसी फिल्म है जो जातीय भेदभाव से भरे भारतीय गावों में महिलाओं और बच्चियों को मुक्त रहने की प्रेरणा देती है और खेलने की भी। खेल भी जीवन को बदलता है, ये जताने वाली फिल्म है-स्केटर गर्ल।

फिल्म पूरे परिवार के साथ देखी जा सकती है और खास कर बच्चों को अपनी स्वतंत्र सोच पैदा करने के लिए इसे जरूर दिखाई जानी चाहिए। थोड़ा विदेशी नजरिया जरूर है कहानी को देखने समझने का लेकिन फिल्म अच्छी बन गयी है।

स्केटर गर्ल अदम्य साहस से ज्यादा एक जिद की कहानी है, ऐसी जिद जो लड़ती तो नहीं है मगर अपनी बात रखने की कई कई बार कोशिश करती है, जब तक कि वो जीत नहीं जाती। लंदन से अपने पिता की जन्मभूमि तलाशते हुए जेसिका (एमी माघेरा) राजस्थान में उदयपुर के एक गांव पहुंचती है और उसकी मुलाकात होती है भील परिवार की बड़ी लड़की प्रेरणा से। गरीबी के अभिशाप से जूझता ये परिवार अपने सपनों को रोज़ थोड़ा थोड़ा मारता है। प्रेरणा का भाई अपनी नीची जाति का होने से दुखी है। एक दिन उस गांव में एक अमेरिकी एरिक आता है जो जेसिका का दोस्त है। एरिक स्केटबोर्ड पर सवार हो कर आता है और उसे देख कर बच्चों में खास कर प्रेरणा और उसके भाई में अलग सा उत्साह भर जाता है। प्रेरणा, उसका भाई और स्कूल के कई बच्चे स्केटबोर्ड सीखना चाहते हैं तो जेसिका उनके लिए लंदन से स्केटबोर्ड मंगा देती है और शुरू होता है स्केटबोर्ड चलाना सीखने का सिलसिला।

मुख्य किरदार प्रेऱणा (रचेल संचिता गुप्ता) राजस्थान के उदयपुर के पास के छोटे से गांव की रहने वाली है। किशोर उम्र की है लेकिन स्कूल नहीं जा पाती क्योंकि पिता के पास न यूनिफॉर्म के लिए पैसे हैं न किताब खरीदने के लिए। पर भाई स्कूल जाता है। और फिर एक दिन उस गांव में भारतीय मूल की पर लंदन में रहने वाली एक लड़की जेसिका (एमी मघेरा) आती है।

जैसा कि होता है आर्थिक और जातीय संघर्ष, इस कहानी में रोड़ा बनती है तो जेसिका उदयपुर की महारानी (वहीदा रहमान) की मदद से उस गाँव में एक स्केटिंग रिंक बनाने की इजाजत ले आती है। एरिक और उसके दोस्त बड़े मज़े से ये रिंक बनाते हैं और बच्चे गांव की सड़क के बजाये रिंक में अभ्यास करते हैं। इसी बीच प्रेरणा के पिता उसकी शादी तय कर देते हैं और तमाम विरोध के बावजूद वो दिन आ जाता है जब शादी है और उसी दिन स्केटिंग रिंक में एक नेशनल लेवल की कम्पटीशन भी है। थोड़ा ड्रामा थोड़ा रोना और थोड़े विरोध के बाद, प्रेरणा घर से भाग कर उस कम्पटीशन में भाग लेती है और उसके गुस्सैल पिता भी उसको देख कर खुश होते हैं।

फिल्म मार्मिक है लेकिन आम हिंदी फिल्मों की तरह भावातिरेक से बचती है। जो घटनाएं फिल्म में होती है वो संभव तो हैं लेकिन फिल्म की निर्देशिका मंजरी माखीजानी ने अपना फ़िल्मी करियर अमेरिका में बनाया है इसलिए इन घटनाओं से थोड़ा कनेक्ट कम ही बन पाता है। गौरतलब बात ये है कि मंजरी के पिता अभिनेता मैकमोहन हैं और मंजरी, रवीना टंडन की रिश्ते में बहन लगती हैं। लॉस एंजेलेस में बसी मंजरी ने विशाल भारद्वाज के साथ सात खून माफ़, पैटी जेंकिन्स के साथ वंडर वुमन और क्रिस्टोफर नोलन के साथ द डार्क नाईट राइज़ेस में बतौर सहायक काम किया है और निर्देशन के गुर सीखे। हालाँकि उनकी ये फिल्म, उनके किसी भी गुरु की फिल्म की स्टाइल से बिलकुल जुदा है। निर्देशन अच्छा है, कहीं भी फिल्म स्क्रिप्ट से परे जाने की कोशिश नहीं करती और इसलिए दर्शकों को बांध के रखती है। साधारण लोगों के साधारण जज़्बात, छोटी खुशियां, बड़े ग़म और कठिन ज़िन्दगी… इस फिल्म की खासियत हैं। जाति की लड़ाई खूनी नहीं है मगर कड़वी जरूर है। लड़कियों को आजादी, वो भी राजस्थान में एक सपने जैसी बात लगती है लेकिन वहीदा रहमान जी के किरदार ने उस सपने को इतनी सुन्दर तरीके से उड़ने को पंख दिए कि फिल्म में उनके आते ही कुछ अच्छा होगा, ऐसा लगता है।

रेचल संचिता गुप्ता फिल्म की मुख्य अभिनेत्री हैं। प्रेरणा की भूमिका में उन्होंने बहुत ज़बरदस्त अभिनय किया है। वो दिल्ली की रहने वाली हैं और थिएटर से जुडी हैं। उनकी आँखों में सपने नज़र आते हैं लेकिन चेहरा थोड़ा धोखा दे देता है। बरात का आना और प्रेरणा का घर से भाग जाना अच्छा सीन है लेकिन उसके बाद रेचल का स्केटबोर्डिंग प्रतियोगिता के लिए तैयार होने की प्रक्रिया अविश्वसनीय लगती है। कुछ दृश्य जैसे स्कूल में टीचर जब उसे स्कूल साफ़ करने की सजा देते हैं या जब वो कंप्यूटर पर बैठ कर वीडियो देखती है, बड़े अच्छे बन पड़े हैं। इस अभिनेत्री में काफी सम्भावनाएँ नज़र आती हैं। हो सकता है आने वाले समय में हम इन्हें ग्लैमरस रोल में भी देख सकेंगे।

वहीदा जी का किरदार छोटा सा है और इतना प्रभावशाली है कि उनकी आंखों से ही अभिनय हो जाता है। इस से एक बात और पता चलती है कि अनुभव का आज तक कोई विकल्प आया नहीं हैं। बाकी कलाकार भी अच्छे हैं, छोटी छोटी भूमिकाएं हैं और सभी ने अच्छा अभिनय किया है। स्कूल टीचर के रूप में अनुराग अरोरा ने एक बड़ी अच्छी भूमिका निभाई है, वहीं विज्ञापनों में नजर आने वाले अंकित राव ने भी गेस्ट हाउस के मालिक और बहुधंधी जुगाड़ू का काम अच्छे से निभाया है।

फिल्म में संगीत सलीम सुलेमान ने दिया है और स्केटबोर्डिंग एक अमेरिकन खेल है इसलिए कुछ अंग्रेजी और कुछ हिंदुस्तानी गीत रखे गए हैं। मारी छलांगें कर्णप्रिय है। शाइन ऑन मी स्केटबोर्डिंग के समय बैकग्राउंड में बजता है और जोश भर देता है। इसे गाया मशहूर रैप आर्टिस्ट राजा कुमारी ने गाया है। फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय ऑडियंस और फिल्म फेस्टिवल को ध्यान में रख कर बनाया गया था इसलिए गाने इस तरह के हैं। एक खालिस राजस्थानी गीत की फिल्म में कमी खली है।

मध्य प्रदेश में जानवर नाम की जगह पर आशा गोंड नाम की एक लड़की की कहानी पर आधारित ये फिल्म बनी है। हालांकि मंजरी इस बात से इंकार करती है की ये फिल्म आशा की कहानी पर बनी है लेकिन हिंदुस्तान में एक छोटे से गाँव में एक लड़की का विद्रोह कर के स्केटबोर्डिंग करना ये सिर्फ जानवर में ही हुआ है। जर्मनी के एक सोशल एक्टिविस्ट उलरिक रेनहार्ड ने इस गाँव में स्केटिंग रिंक बनायी जिसके लिए उसने विदेशों में अपने मित्रों से मदद ली थी। ऐसा ही कुछ इस फिल्म में ही दिखाया गया है। खैर कंट्रोवर्सी तो फिल्मों का हिस्सा होने लगी हैं तो स्केटर गर्ल में भी सही। इस फिल्म का नाम पहले डेजर्ट डॉलफिन रखा गया था फिर आम समझ के लिए इसका नाम आसान बना दिया गया।

स्केटर गर्ल (2 ½*)
निर्देशक- मंजरी माकीजानी
कलाकार- रचेल संचिता गुप्ता, एमी मघेरा, जोनाथन रेडविन, शाफिन पटेल, वहीदा रहमान

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